Friday, October 9, 2015

दादा शहीद



गोबिंदपुर गाँव जो की बिहार में स्थित है। वहाँ पर प्राचीन काल में एक व्यक्ति रहते थे।
जिन्हे गाँव वाले सभी दादा कहकर बुलाते थे , और पूरा गाँव उन्हें सम्मान देता था।
यहां तक की वे अन्य गाँव वालों की समस्या का समाधान भी करते थे।

चुकी दादा एक निहायत ही सच्चे और ईमानदार वयक्तियों में से एक थे।
अतः आसपास के सम्पूर्ण ग्रामीनवासी उनपर सम्पूर्ण रूपसे भरोसा करतें थे ,
और उनके द्वारा सुनाया गया फैसले को भी स्वीकार करते थे।

समय बीतता गया और उनकी ख्याति बढ़ती गई ,वे लगभग १०० साल की उम्र पार कर चुके थे।

परन्तु फिर भी पूर्णतः स्वस्थ थे।

उनके साथी एवं उनके सभी ग्रामीण वासी एवं आस पास के गाँव के लोग जो उनकी उम्र
के थे वे सभी स्वर्गवासी हो चुके थे।

परन्तु उनकी सेहत को देखकर , ऐसा प्रतीत होता था, की बिलकुल अभी पूर्णतः स्वस्थ हैं

और वे वाकई स्वस्थ थे। एक दिन वे अचानक बहुत ही सोंच में पड़ गए।
के आखिर कार मुझे खुदावंद ताला अपने पास क्यों नहीं बुलाता , और वे इसी फिक्र में रहने लगे।

एक दिन दादा का मन घबराने लगा की जाने क्यों मुझे मौत नहीं आ रहीं।
और इसलिए उन्होंने अपने घरवालों के सामने अपने आपको जिन्दा ही कब्र में दफ़नाने की
इक्छा जाहिर की।

लेकिन यह मुमकिन नहीं कहकर घरवालो ने उनकी इस ख्वाहिस को नजरअंदाज कर दिया।

समय बीतता गया और दादा की बेचैनी बढ़ती गई , एक दिन घरवालो को उन्होंने दुबारा से
अपनी बात बताई लेकिन इसबार भी , निराशा ही हाथ लगी।  फलस्वलरूप दादा ने अन्न त्याग
करने का फैसला किया और बिना खाना खाए ही महीनो गुजार दिया।

लेकिन फिर भी घरवालों ने उनकी बात नहीं मानी। और दादा के स्वस्थ्य पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ा।
अंततः दादा ने घर त्यागने का फैसला लिया और फिर घर त्याग कर अपने गाँव के पास ही नहर पर बगीचे
में रहने लगे।

परन्तु घरवाले एवं ग्रामीण वासी उनसे मिलने नहर पर ही आया करते थे , कई साल गुजर जाने के बाद
एक दिन की बात है के अपने घरवालों को फिर से अपनी इच्छा जाहिर की। और बताई के मेरी कब्र खोद दो।

कमसे काम मैं उसमे लेटा रहूँगा। इसबार दादा के जिद को देखते हुए घरवालों ने और गाँव वालो ने मिलकर उनकी कब्र नहर पर ही खोद दी। और दादा उसमे लेट गए , और इसप्रकार से गाँव वाले और घरवाले सभी अपने अपने घर चले  गये, कई दिन गुजरने के बाद एक दीन दादा रात को १२ बजे उठकर नहर पर ही खड़े हो गए।
इत्तफाक से एक बारात उसी नहर वाले रस्ते से आ रही थी ,और बारातियों ने दूर से ही देखा की कोई अकेले नहर पे खड़ा है, और बरातियों ने समझा के यह भूत है.

इसलिए बारात वही से वापिस हो गई।  दूसरे दिन जिस गाँव से बारात आ रही थी , उस गाँव के निवासी गोविंदपुर गाँव में जाकर पता लगाया की , क्या नहर पर कोई भूत  रहता है ? तो ग्रामीण वासिओं को फ़ौरन शक हुआ की शायद दादा शहीद रात को नहर पर टहलने के लिए उठें होंगे, तो पूछताछ में दादा शहीद ने
ये बात कुबूल किया , और फिर गाँव वालो से आग्रह किया की अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।

जिसके लिए मुझे माफ़ करें , और कृपया मुझे अब जिन्दा ही कब्र में दफ़न करने का इंतजाम करें।
गाँव वाले और घरवालों ने कहा की ठीक है ,लेकिन हम आपसे मिलने कैसे आएंगे ? और फिर बातें कैसे करेंगे ?
तो दादा जी ने बोला की ठीक है मेरी कब्र के ऊपर थोड़ी सी जगह छोड़ देना और वही आकर मुझसे बाते करना।
ये सिलसिला कुछ महीनो तक चलता रहा। अंत में एक दिन कोई वयक्ति उनकी कब्र पे आया और उसने बात करने की कोशीश  की तो कब्र के अंदर से आवाज आनी बंद हो गई।
और फिर इस तरह से दादा जी ने इस दुनिआ -ऐ -फानी को अलविदा कह दिया।
और तभी से सब लोग उन्हें दादा  शहीद  के नाम से याद करने लगे।

कुछ समय बितने के बाद एक युवक को उनकी काबिलियत  और यश पर संदेह हुआ जिसकी वजह से उस युवक ने उनकी कब्र को खोदने का प्रयास किया परन्तु जब उस युवक का हाथ कब्र खोदते समय जमीं में फंस गया तो
बहुत दूर दूर से बड़े बड़े मौलवी और हाफ़िज़ को बुलाना पड़ा , उंसके बाद उस युवक का हाथ बाहर निकला।

इसी तरह की एक और घटना घटित हुई , उनिक कब्र के पास एक और युवक ने गुस्ताखी करते हुए उनकी कब्र के पास इस्तिंजा कर दिया , फलस्वरूप वह  युवक दूसरे ही दिन पागल हो गया।

काफी समय बितने के बाद दादा शहीद का यश दूर दूर तक फ़ैल चूका था , और फिर इस घटना के बाद  लोगों की मन्नतें पूरी होने लगी .
एक समय की बात है की किसी किसान की गाय दूध नहीं दे रही थी तो किसी वयक्ति ने दादा शहीद के पास गाय को  केले के थम्भ के साथ ले जाने सलाह दी  , उस वयक्ति ने ऐसा ही किया। जैसे ही गाये के साथ गाये का मालिक दादा शहीद के मजार के पास पहुंचा तो गाये बहुत तेजी से भागने लगा।  मालिक ने बुलाने का बहुत प्रयास किया लेकिन गाय मजार  के पास से वापिस अपने घर आकर रुकी।  जब गाय का मालिक घर आया तो देखा गाय का थन दूध से भरा हुआ है और फिर उसने दूध निकालना शुरू कर दिया , तब से  उनकी ख्याति और बढ़ गयी।


Sunday, February 6, 2011



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जैसे ही गाँव वाले मुर कर वापस जाने लगते है के दो दो विमान दुबारा से उनके इर्द गिर्द ऊपर चक्कर काटने लगते है और ...फिर क्या था गाँव वालों ने विमान पर फाइरिंग करनी शुरू कर दी .....पर अफ़सोस की उन अलिंज़ को इससे कुछ भी फर्क नहीं पर्ने वाला था क्यों की उन्होन ने बुल्लेट प्रूफ कपरे पहन रखे थे .....वे उन गाँव वालों के सामने ही जमीन पर उतारे दो लोग और फिर एक बन्दूक से धरती पे गोली चला दी ...वहां पे एक बड़ा सा सुरंग था ....दोनों एलिएन्ज़ उस सुरंग में घुस गए और फिर विमान दुबारा एलिएन्ज़ की दुनिया की ओओर चला गया ....गाँव वाले सब देखते रह गए और कुछ नहीं कर पाए ...थोरी देर के बाद पुलीस आती है और तहकीकात कर के चली जाती है .....

Sunday, January 30, 2011

अनोखा घर

(मानते है की दुनियां ने बहुत तरक्की कर ली है आज के समय में, लेकिन वो जो एलिएअज़ है हमसे ज्यादा तरक्की पे है ....मनुष्य फिर भी उनको हराने का हर संभव प्रयास कर रहा है )
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एक दिन की बात है जब घनघोर घटा छाई  हुई थी चारो तरफ....... और एक घर जो की सुनसान पड़ा था...... वहां अचानक दो अनोखे विमान उतर आये,वहाँ  सोनू खड़ा होकर प्रकृति  के नज़ारे कर रहा था के अचानक बहुत तेझ की आवाज सुनाई दी........ और सोनू ने जो नजार देखा तो देख कर हैरान रह गया ...उस विमान में से कुछ अजीबो गरीब लोग उतर रहे थे और जैसे किसी चीज की तलाश में थे तभी उस के कदम वहां से उखर गए और वह घबराकर अपने घर की तरफ भागने लगा ......और अपने मोहल्ले वालो को इस घटना के बारे में बताया ....
फिर क्या था मोहल्ले वालों में अफरा तफरी सी मच गई और ...सब के सब अपने अपने घरों से औजार लाठी भला और बंदूकों के साथ उस हवेली की तरफ जंगल की ओर अपने कदम बढाने  लगे ....और फिर किसी ने इस बात की सुचना पुलीस को भी दे दी .....

लेकिन जब तक वहां गावं के लोग पहुचे तबतक वो सब अलिएन्ज़ अपना काम ख़तम कर के जा चुके थे ....
 दरअसल में वे अलिएन्ज़ उस गाँव की मिटटी का सेम्पल के लिए आये थे ....उनके कुराफाती दिमाग में एलिएन्ज़ की दुनिया को उपजाव भूमि में तब्दील करने की योजना चल रही थी ......

अतः उस समय सभी गाँव  वालों को वहां से निराश होकर आना पड़ा ....लेकिन सोनू की तो जैसे नींद और चैन जाती  रही ...
गाँव वालों ने जब उससे उनके हुलिए के बारे में पूछा तो सोनू ने बताया ....वे बिलकुल मनुष्य के जैसे ही थी लेकिन उनके  हाथ और पैर और मुह का नक्शा थोडा बदला बदला सा था और उनकी कद काठी एक साधारण मनुष्य से बड़ा  था .....

वे जिस विमान में आये थे उस बिमान का क्या कहना एक अनोखे से घर की सकल में था वोह विमान ...और उसमे एक बहुत बड़ा दरवाजा था ...उसी बिमान में साड़ी सुविधाए रही होंगी एहां  तक के वो विमान इतना बड़ा था के उस विमान पे एक और विमान के लैंड करने की जगह थी ......

 

Thursday, October 14, 2010

दरवाजा खुला हुआ है


ठोकर लगे तो आना दरवाज़ा खुला हुआ है
आकर फिर न जाना दिल रौशन किया हुआ है

जालिम है यह ज़माना और तुम हो बेखबर
रास्ता बड़ा कठिन है पहरा लगा हुआ है

दिल तेरा कोई दुखाये तो मुझको याद करना
छुपाने को दिल में एक कोना  बचा हुआ है

तेरी नासमझी ने ही मुझको बड़ा रुलाया
आंसू से मेरा दामन अबभी भरा हुआ है

तेरे खोने का गम तो है ही पर कभी
कोई जालिम न सताए डर इसका बना हुआ है